“जो न्याय, राष्ट्र और गरीबों के पक्ष में बोलता है, वो अक्सर सबसे ज्यादा सताया और अपमानित किया जाता है।”——-सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह
मगर, कड़वी सच्चाई यही हैं कि आज भी देश उन्हीं जटिल समस्याओं से जूझ रहा है, जिनका हल इन राष्ट्रवादी विचारकों ने वर्षों पहले सुझाया था —–सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह
देशहित में, अब भी वक्त है उन्हें पुनः पढ़ने, समझने और उनके राष्ट्रवादी विचारों को सम्मान दे ——–सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह
क्योंकि….. इतिहास ने साबित किया है कि सच्चे राष्ट्रभक्त कभी लोकप्रिय नहीं होते, लेकिन हमेशा जरूरी होते हैं।”——–सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह
नई दिल्ली। सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह अपने विचारों को एक सशक्त, भावनात्मक और सटीक समाचार शैली में प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़ने वाले को गहराई से छूने और देशहित में, इस विषय को गंभीता से सोचने समझने का प्रयास करें।
सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह ने कहा,”सब को मालूम हैं कि आज भी भारत में एक ग़रीब दलित (कमजोर) का राष्ट्रवादी होना कुछ लोगों को असहज कर देता है। यही कारण है कि उनके विचारों को पूर्व से दबाया जाता रहा है, साथ ही, उनकी ईमानदार और दयालु छवि को भी धूमिल करने के प्रयास किए जाते रहें हैं — कभी उनकी मूर्तियों को खंडित करके, तो कभी उनके देशहित, कमजोरों के न्यायहित और जनहित के विचारों को विकृत कर असम्मानित किया जाता रहा हैं।”

उन्होंने आगे कहा,”लेकिन जब यही आलोचक उनकी लिखी राष्ट्रहितकारी पुस्तकें और राष्ट्रवादी विचार पढ़ते हैं, तो मन ही मन स्वीकार करते हैं कि “क्या दूरदृष्टि वाला व्यक्तित्व था, जिसने सौ साल पहले ही वो बातें लिख दीं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।”
“उनकी लेखनी और राष्ट्रवादी विचारों में न केवल देशहित, न्यायहित एवं जनहित की स्पष्ट चेतना थी, बल्कि उसमें निर्भीकता थी — एक ऐसी राष्ट्रवादी निर्भीकता जो उस दौर में और भी दुर्लभ थी, जब सच बोलना सत्ता के खिलाफ जाना माना जाता था।”
साथ ही, सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह ने बताया कि ‘”पाकिस्तान और द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ जैसी पुस्तक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो तथाकथित सेक्युलर समूहों को असहज कर देती है। क्योंकि वह सवाल पूछती है ? और नंगे सत्य को बिना लाग-लपेट के सामने रखती है।””
“”यही कारण है कि आज़ादी के बाद सत्ता की चकाचौंध में डूबे सत्ताधीशों को उसकी तीव्रता चुभती थी। नतीजा – राष्ट्रीवादी लेखक को तिरस्कार मिला, और उन राष्ट्रहित और सर्व समाज की एकता के महत्वपूर्ण विचारों को नजरअंदाज कर अपमानित किया गया, जो देश की अखंडता और सर्व समाज की एकता को जोड़ने का काम करते हैं।””
सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह ने यह भी बताया कि”” सदियों बाद आज भी यह कटु सत्य बना हुआ है – इस देश में राष्ट्रवादी सोच रखने वाला दलित (कमजोर) व्यक्ति अपमान का पात्र बनता है, जबकि विभाजनकारी शक्तियाँ सम्मान पाती हैं।””
आखिर में सामाजिक चिंतक संजय साग़र सिंह कहा, “”””जो न्याय, राष्ट्र और गरीबों के पक्ष में बोलता है, वो अक्सर सबसे ज्यादा सताया और अपमानित किया जाता है। मगर, कड़वी सच्चाई यही हैं कि आज भी देश उन्हीं जटिल समस्याओं से जूझ रहा है, जिनका हल इन विचारकों ने वर्षों पहले सुझाया था। अब भी वक्त है उन्हें पुनः पढ़ने, समझने और उनके राष्ट्रवादी विचारों को सम्मान दे — क्योंकि इतिहास ने साबित किया है कि सच्चे राष्ट्रभक्त कभी लोकप्रिय नहीं होते, लेकिन हमेशा जरूरी होते हैं।””””
